संस्थान की स्थापना (1958)
पचास के प्रारंभिक दशक में, गांवों के सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए
देश में सामुदायिक विकास खंड स्थापित किए गए थे। कार्यकारी पदानुक्रम के अधिकारियों
को अभिमुखीकरण पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए सामुदायिक विकास में केंद्रीय अध्ययन और
अनुसंधान संस्थान की परिकल्पना की गई और 1958 में मसूरी में स्थापित की गई। दिसंबर
1958 में राजपुर, देहरादून में स्थापित प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण संस्थान (जिसे बाद
में समुदाय विकास अनुदेश संस्थान नाम बदलकर रखा गया) को जिला पंचायत अधिकारियों और
उप-संभागीय अधिकारियों एवं राज्य संस्थानों के प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण का कार्य सौंपा
गया। अप्रैल,1962 में दोनों संस्थानों को मिलाकर राष्ट्रीय सामुदायिक विकास संस्थान
(एनआईसीडी) के नाम रखा गया। 1964-65 के दौरान एनआईसीडी को हैदराबाद परिसर में स्थानांतरित
कर दिया गया। संस्थान को 1350 फ़ासली (1965 की संख्या 229) की लोक सेवा पंजीकरण अधिनियम
संख्या 1 के तहत पंजीकृत सोसाईटी में बदल दिया गया । 20.9.1977 को आयोजित इसकी बैठक
में महापरिषद द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार, संस्थान का नाम बदलकर राष्ट्रीय ग्रामीण
विकास संस्थान (एनआईआरडी) के रूप में पंजीकृत किया गया। एसआईआरडी और ईटीसी के नेटवर्क
के माध्यम से पंचायती राज प्रणाली को मजबूत करने और पीआरआई कर्मचारियों की क्षमता निर्माण
पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को पहचानते हुए, वर्ष 2014 में एनआईआरडी का नाम बदल
कर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडी एवं पीआर) रखा गया।
फरवरी 1988 में एनआईआरडी में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी द्वारा
"उत्तरदायी प्रशासन" पर जिला कलेक्टरों / मजिस्ट्रेटों की कार्यशाला का उद्घाटन।
दिसंबर 2008 में एनआईआरडी स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए
भारत की माननीय पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ।
अक्टूबर 2008 में प्रौद्योगिकी बैंक पर राष्ट्रीय परामर्श के उद्घाटन समारोह के अवसर
पर सभा को संबोधित करते हुए भारत के माननीय पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. ए.पी.जे.
अब्दुल कलाम।